वेदस्तुति 18

 


जीव भगवान से उत्पन्न होता है यह कहने का ऐसा अर्थ नहीं है कि भगवान परिणाम के द्वारा जीव बनते हैं।

"सिद्धांत तो यह है कि प्रकृति और पुरुष दोनों ही अजन्मा है"अर्थात उनका वास्तविक स्वरूप जो भगवान है कभी वृतियों के अंदर उतरता नहीं, जन्म नहीं लेता।तब प्राणियों का जन्म कैसे होता है? 

अज्ञान के कारण, पुरुष को प्रकृति समझ लेने से,एक का दूसरे के साथ संयोग हो जाने से।

"जैसे बुलबुला नाम की कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है परंतु उपादान कारण जल और निमित्त कारण वायु के सहयोग से उसकी सृष्टि हो जाती है।"

प्रकृति में पुरुष और पुरुष में प्रकृति का अध्यास (एक में दूसरे की कल्पना) हो जाने के कारण ही जीवो के विविध नाम और गुण रख लिए जाते हैं।


अंत में जैसे समुद्रमें नदियां और मधुमें समस्त पुष्पोंके रस समा जाते हैं, वैसे ही वे सब-के- सब उपाधि रहित आप में समा जाते हैं।

(इसलिए जीवो की भिन्नता और उनका पृथक अस्तित्व आपके द्वारा नियंत्रित है। उनकी पृथक स्वतंत्रता और सर्व व्यापकता आदि, वास्तविकसत्य को न जाननेके कारण ही मानी जाती है)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पूतना उद्धार,6