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पूतना उद्धार,6

 कवच धारण कराया  ŚB 10.6.22-29 अव्यादजोऽङ्‍‍घ्रि मणिमांस्तव जान्वथोरू यज्ञोऽच्युत: कटितटं जठरं हयास्य: । हृत्केशवस्त्वदुर ईश इनस्तु कण्ठं विष्णुर्भुजं मुखमुरुक्रम ईश्वर: कम् ॥ २२ ॥ चक्रय‍ग्रत: सहगदो हरिरस्तु पश्चात् त्वत्पार्श्वयोर्धनुरसी मधुहाजनश्च । कोणेषु शङ्ख उरुगाय उपर्युपेन्द्र- स्तार्क्ष्य: क्षितौ हलधर: पुरुष: समन्तात् ॥ २३ ॥ इन्द्रियाणि हृषीकेश: प्राणान् नारायणोऽवतु । श्वेतद्वीपपतिश्चित्तं मनो योगेश्वरोऽवतु ॥ २४ ।। पृश्न‍िगर्भस्तु ते बुद्धिमात्मानं भगवान् पर: । क्रीडन्तं पातु गोविन्द: शयानं पातु माधव: ॥ २५ ॥ व्रजन्तमव्याद्वैकुण्ठ आसीनं त्वां श्रिय: पति: । भुञ्जानं यज्ञभुक् पातु सर्वग्रहभयङ्कर: ॥ २६ ॥ डाकिन्यो यातुधान्यश्च कुष्माण्डा येऽर्भकग्रहा: । भूतप्रेतपिशाचाश्च यक्षरक्षोविनायका: ॥ २७ ॥ कोटरा रेवती ज्येष्ठा पूतना मातृकादय: । उन्मादा ये ह्यपस्मारा देहप्राणेन्द्रियद्रुह: ॥ २८ ॥ स्वप्नद‍ृष्टा महोत्पाता वृद्धा बालग्रहाश्च ये । सर्वे नश्यन्तु ते विष्णोर्नामग्रहणभीरव: ॥ २९ ॥

प्रश्न का उत्तर

भक्तका प्रश्न: - "जीव भगवान से उत्पन्न होता है"यह कहने का अर्थ क्या है? क्या भगवान परिणाम के द्वारा जीव बनते हैं ? सिद्धांत तो यह है कि प्रकृति और पुरुष दोनों ही अजन्मा है अर्थात उनका वास्तविक स्वरूप जो भगवान है कभी वृतियों के अंदर उतरता नहीं, जन्म नहीं लेता।तब प्राणियों का जन्म कैसे होता है?            भागवतमहापुराण :- अज्ञान के कारण , पुरुष को प्रकृति समझ लेने से, एक का दूसरे के साथ संयोग हो जाने से। "जैसे बुलबुला नाम की कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है परंतु उपादान कारण जल और निमित्त कारण वायु के सहयोग से उसकी सृष्टि हो जाती है।" प्रकृति में पुरुष और पुरुष में प्रकृति का अध्यास (एक में दूसरे की कल्पना) हो जाने के कारण ही जीवो के विविध नाम और गुण रख लिए जाते हैं।  अंतमें, जैसे समुद्रमें नदियां और मधुमें समस्त पुष्पोंके रस समा जाते हैं, वैसे ही वे सब-के- सब उपाधिरहित भगवानमें समा जाते हैं।"।                                  ( इसलिए जीवो की भिन्नता और उनका पृथक अस्तित्व भगवान के द्वारा नियंत्रित है। उनकी पृथक स्वतंत्रता और सर्वव्यापकताआदि, वास्तविकसत्यको न जाननेके का

वेदस्तुति 18

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  जीव भगवान से उत्पन्न होता है यह कहने का ऐसा अर्थ नहीं है कि भगवान परिणाम के द्वारा जीव बनते हैं। "सिद्धांत तो यह है कि प्रकृति और पुरुष दोनों ही अजन्मा है"अर्थात उनका वास्तविक स्वरूप जो भगवान है कभी वृतियों के अंदर उतरता नहीं, जन्म नहीं लेता।तब प्राणियों का जन्म कैसे होता है?  अज्ञान के कारण, पुरुष को प्रकृति समझ लेने से,एक का दूसरे के साथ संयोग हो जाने से। "जैसे बुलबुला नाम की कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है परंतु उपादान कारण जल और निमित्त कारण वायु के सहयोग से उसकी सृष्टि हो जाती है।" प्रकृति में पुरुष और पुरुष में प्रकृति का अध्यास (एक में दूसरे की कल्पना) हो जाने के कारण ही जीवो के विविध नाम और गुण रख लिए जाते हैं। अंत में जैसे समुद्रमें नदियां और मधुमें समस्त पुष्पोंके रस समा जाते हैं, वैसे ही वे सब-के- सब उपाधि रहित आप में समा जाते हैं। (इसलिए जीवो की भिन्नता और उनका पृथक अस्तित्व आपके द्वारा नियंत्रित है। उनकी पृथक स्वतंत्रता और सर्व व्यापकता आदि, वास्तविकसत्य को न जाननेके कारण ही मानी जाती है)

2to15 10th canto

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